Hariyali Amavsya Special: पर्यावरण संरक्षण भावना से जुड़ा भारत का हरियाली अमावस्या पर्व

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श्रीराम माहेश्वरी।

हरियाली अमावस्या पर्व पर्यावरण संरक्षण की भावना से जुड़ा है। भारतीय संस्कृति में हरियाली अमावस्या पर्व का विशेष महत्व है। श्रावण मास में हरियाली अमावस्या के दिन भक्तगण पीपल वृक्ष की पूजा करते हैं। पीपल की पूजा के साथ भगवान श्री शिव जी का अभिषेक पूजा और माता पार्वती की पूजा करते हैं । इस दिन वृक्षारोपण करने वृक्षों का संरक्षण करने का श्रद्धालु संकल्प लेते हैं।


हरियाली अमावस्या व्रत के दिन श्रद्धालु कथा का वाचन करते और सुनते हैं। मान्यता है कि शिव पार्वती जी कथा सुनने से संकटों का निवारण होता है और मनोकामना पूर्ण होती है । इस दिन महिलाएं व्रत रखती हैं और सुहाग का सामान आपस में वितरित करती हैं। सुबह शाम पीपल पेड़ के नीचे दीपक जलाती हैं। भारत के अनेक राज्यों में यह पर्व बड़े उत्साह और उमंग से मनाया जाता है।


 हरियाली अमावस्या व्रत कथा- एक समय की बात है। एक राजा महल में पुत्रवधू सहित परिवार के साथ सुखपूर्वक रहता था। उसकी पुत्रवधू ने एक दिन रसोई में मिठाई देखी तो वह सारी मिठाई खा गई। जब उससे पूछा गया कि मिठाई कहां गई तो उसने कहा सारी मिठाई चूहे खा गए। पुत्रवधू की बात सुनकर चूहे ने क्रोध किया और इस गलत आरोप का उसने बदला लेने का सोचा । कुछ दिन बाद महल में मेहमान आए। इस दिन चूहे ने बहू की साड़ी चुराई और उसे अतिथि के कमरे में जाकर रख दी। सुबह सेवकों ने  साड़ी को अतिथि के कमरे में देखा तो बहू के चरित्र पर बातें करने लगे। यह बात राजा ने सुनी तो उसने अपनी पुत्रवधू के चरित्र पर संदेह करते हुए उसे महल से निकाल दिया। 

महल से निकलकर बहू एक झोपड़ी में रहने लगी और नियमित रूप से पीपल के वृक्ष के नीचे दीपक जलाने लगी । साथ ही वह पूजा करके गुड़धानी का भोग लगाकर लोगों में प्रसाद वितरित करने लगी। एक दिन राजा उस पीपल के पेड़ के पास से गुजरे। उन्होंने देखा कि पेड़ के पास रोशनी जगमगा रही है। इस पर राजा को आश्चर्य हुआ। उन्होंने अपने सैनिकों से इस रोशनी का रहस्य पता लगाने के लिए कहा। सैनिक पेड़ के पास गए। वहां उन्होंने देखा कि दीपक आपस में बात कर रहे थे। एक दीपक बोला मैं राजा के महल से हूं । 

महल से निकाले जाने के बाद राजा की पुत्रवधू रोज मेरी पूजा करती है और मुझे प्रज्वलित करती है। अन्य दीपक ने  पूछा कि राजा की बहू को महल से क्यों निकाला गया । उसने बताया की एक दिन बहू ने मिठाई खाकर चूहे का झूठा नाम लगा दिया था। इससे नाराज चूहे ने राजा की बहू से बदला लेने के लिए उसकी साड़ी चुराकर अतिथि के कमरे में रख दी थी। यह देखकर राजा ने उसे महल से निकाल दिया। सैनिकों ने राजा को पूरी कहानी सुनाई । यह सुनकर राजा ने अपनी गलती मानी और अपनी पुत्रवधू को महल में वापस बुला लिया । 


इस प्रकार पीपल की पेड़ की नियमित पूजा करने का फल राजा की बहू को मिला और वह अपना सुखपूर्वक जीवन व्यतीत करने लगी। कथा से हमें शिक्षा मिलती है कि हमें झूठ नहीं बोलना चाहिए निराधार अफवाह पर विश्वास कर जल्दी निर्णय नहीं लेना चाहिए। पेड़ों और जीव जंतुओं का संरक्षण करना चाहिए। पेड़ लगाने और उनका संरक्षण करने से हरियाली बढ़ती है। इससे मानव जीवन सुखद और स्वास्थ्यप्रद रहता है । लोगों के बीच सामाजिक समरसता बढ़ती है। 

(लेखक मध्यप्रदेश के वरिष्ठ साहित्यकार हैं)



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